Thursday, May 5, 2016

समाज हित पत्रकारिता का परम धर्म

समाज हित पत्रकारिता का परम धर्म

नारद जयंति – 23 मई
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पुराणों में वर्णित विभिन्न ऐतिहासिक कथाओं में श्रेष्ठ मुनि नारद की भूमिका नवीनतम सूचनाओं के कुशल संवाहक व प्रभावी उपदेष्टा के रूप में सहज ही उभरती है. वर्तमान में जब सम्पूर्ण मानव जाति एक ओर सूचना क्रान्ति का आनन्द लेती प्रतीत होती है तो दूसरी ओर यह भी कटु सत्य है कि मीडिया आधारित सामाजिक संवाद दुख, निराशा और विवादों का जनक व संवाहक भी स्पष्ट तौर से दिखता है. पत्रकारों व मीडिया कर्मियों के कार्यों, कर्तव्यों, दायित्वों व मर्यादाओं की चर्चाएं अनेक होती हैं, पर अक्सर परिणाम मूलक नहीं रहती. शहद तो सभी निकालना चाहते हैं, परन्तु मधुमक्खियों के छज्जे में हाथ डालने की हिम्मत तो किसी में नहीं होती. वर्षों के प्रयासों के बावजूद न तो मीडिया अपनी आचार-संहिता बना सका, न ही समाज या शासन इस कार्य को कर सका.
पत्रकारिता के शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थान भी असमंजस में हैं कि भविष्य के पत्रकारों को आदर्श व्यवहारिकता सिखाई जाए या तुरन्त सफलता प्राप्त करने के लिए सिद्धान्त विहीन शिक्षण दिया जाए. मीडिया के आदर्श व्यक्तित्वों के बारे में बड़ी ऊहापोह की स्थिति है. माखनलाल जी, पराडकर जी, गणेश शंकर जी जैसे रोल मॉडल हों या राडिया कांड में लिप्त वर्तमान के विख्यात-कुख्यात ‘एक्टिविस्ट’ पत्रकार. आज की भारतीय पत्रकारिता मुख्यतः उस अमेरिकी संवाददाता का अनुसरण कर रही है, जिसकी रिर्पोर्टिंग से श्वेत-स्याह जातीय दंगे फैले और सौ के लगभग हत्याएं हुई. न्यायालय में उसका वक्तव्य था कि पत्रकार होने के नाते उसका कर्तव्य सत्य को ढूंढना और उसको रिपोर्ट करना है. परिणामों के विषय पर पूछने पर उसने कहा कि उसकी रिपोर्टिंग से समाज में क्या होता है, उससे उसका कोई लेना देना नहीं है.

इस असमंजस की स्थिति में मानव-हित का कोई दर्शन या सिद्धान्त ढूंढते हैं तो बरबस नारद का चरित्र सामने आ जाता है. नारद का कार्य भी आज के पत्रकारों की तरह समाचारों के संकलन और उनके सम्प्रेषण का ही था. हालांकि यह उनका व्यवसाय नहीं था, फिर भी जीवन भर उन्होंने यही कार्य किया. नारद की विभिन्न कथाओं से एक बड़ा तथ्य यह निकल कर आता है कि वे समाज के हर वर्ग में स्वीकार्य थे, इतना ही नहीं हर समूह में वे सम्माननीय भी थे. उस समय सत्ता के तीन केन्द्र थे. देवता, मानव और दानव. तीनों का अपना-अपना संसार था, साथ ही आपसी सम्बन्ध भी थे, कभी प्रेम सद्भाव के, तो कभी ईर्ष्या, घृणा के और कभी-कभी तो प्रत्यक्ष युद्ध के. हर परिस्थिति में नारद के लिए सभी सहज उपलब्ध थे. इन्द्र से लेकर ब्रह्मा, हिरण्याकश्यप से कंस तक के पास नारद कभी भी बिना अनुमति, बिना घोषणा के आ जा सकते थे. ऐसे ही सहज पहुंच उनकी सभी मानव नरेशों में थी.

कहीं भी जब नारद अचानक प्रकट हो जाते थे तो होस्ट की क्या अपेक्षा होती थी? हर कोई, देवता, मानव या दानव उनसे कोई व्यापारिक या कूटनीतिक वार्ता की उम्मीद नहीं करते थे. नारद तो समाचार ही लेकर आते थे. ऐसा संदर्भ नहीं आता जब नारद औपचारिकता निभाने या ‘कर्टसी विजिट’ के लिए कहीं गए हों. तो, पहली बात तो यह कि समाचारों का संवाहन ही नारद के जीवन का मुख्य कार्य था, इसलिए उन्हें आदि पत्रकार मानने में कोई संदेह नहीं है. आज के संदर्भ में इसे हम पत्रकारिता का उद्देश्य मान सकते हैं.
परन्तु नारद के द्वारा दिए गए समाचार की क्या विशेषता थी? सौ प्रतिशत विश्वसनीय. किसी ने, कभी भी नारद के समाचार पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया. क्योंकि अनुभव के आधार पर सबके मन में नारद पर अटूट विश्वास बन गया था. प्रवृत्ति तो ऐसी होती है कि मन को प्रिय लगने वाली सूचना यदि असत्य भी हो तो भी मानने का मन करता है, परन्तु अप्रिय घटना की सूचना वास्तविक होने पर भी मन में शंकाएं उत्पन्न करती है. नारद का वैशिष्ट्य निरन्तर यह रहा कि किसी ने उनसे पलट कर यह भी नहीं पूछा कि ‘‘नारद, क्या तुम सत्य बोल रहे हो’’. सूचनाओं का पूर्ण रूप से तथ्यात्मक व पुष्ट होना पत्रकारिता का मर्म माना जा सकता है. ‘ब्रेकिंग न्यूज’ की बनावटी दौड़ में मनगढ़ंत, अपुष्ट, अधूरी व अर्धसत्य प्रसारित करना केवल भद्दी पत्रकारिता ही नहीं है, यह तो अपराध की श्रेणी में आना चाहिए. नैतिकता के नाते यह व्यक्ति और संस्था द्वारा किया पाप है.
समाचारों के संवाहक के रूप में नारद की सर्वाधिक विशेषता है उनका समाज हितकारी होना. नारद के किसी भी संवाद ने देश या समाज का अहित नहीं किया. कुछ संदर्भ ऐसे आते जरूर हैं, जिनमें लगता है कि नारद चुगली कर रहे हैं, कलह पैदा कर रहे हैं. परन्तु जब उस संवाद का दीर्घकालीन परिणाम देखते हैं तो अन्ततोगत्वा वह किसी न किसी तरह सकारात्मक परिवर्तन ही लाते हैं. इसलिए मुनि नारद को विश्व का सर्वाधिक कुशल लोकसंचारक मानते हुए पत्रकारिता का तीसरा महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किया जा सकता है कि पत्रकारिता का धर्म समाज हित ही है.
संक्षेप में कहा जा सकता है कि –
  1. वर्तमान के जनमाध्यमों के संदर्भ में मुनि नारद को न केवल आदि पत्रकार मानना चाहिए, परन्तु उन्हें सर्वश्रेष्ठ लोकसंचारक के आदर्श के रूप में भी नई पीढ़ी के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए.
  2. पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य या कार्य सूचनाओं का सम्प्रेषण है, इसमें राजनीति, व्यापार, समर्थन या विरोध का समावेश अवांछनीय है.
  3. समाचारों के कारोबार में केवल तथ्य, पूर्ण तथ्य और पुष्ट तथ्य ही समाविष्ट होने चाहिए. अपनी बनावटी कार्यकुशलता को सिद्ध करने के लिए अधपके समाचार देना समाजद्रोह है. सत्यं वद ही पत्रकारिता का मर्म है.
  4. ऐसे समाचार या विचार जो समाज में नफरत, बैर भाव और निराशा फैला सकते हों, उनका सम्प्रेषण नहीं होना चाहिए. अतः समाज का हित और विकास ही पत्रकारिता का धर्म है.
प्रो. बृज किशोर कुठियाला
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति हैं)

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